धरा तुम्हें पुकारती | हिंदी कविता Hindi Kavita

धरा तुम्हें पुकारती | हिंदी कविता Hindi Kavita Dhara Tu hai pukarti Hindi Kavita

धरा तुम्हें पुकारती

Hindi kavita | धरा तुम्हे पुकारती
कविता की फ़ोटो

पुकारता तुम्हें गगन धरा तुम्हें पुकारती , खड़ा रथ निहारता , कहाँ गया सारथी ॥

स्वदेश नष्ट हो रहा , विवेक भ्रष्ट हो रहा आज राष्ट्रभक्ति का स्वरूप नष्ट हो रहा । साधना मिटे नहीं , मिटी नहीं साधकी ॥ 1 ॥

पुकारता तुम्हें … भेद – भाव बढ़ रहा , लोग में समाज में द्वेष भी पनप रहा , नगर गाँव – गाँव में । मन्द गति हो गई , स्वधर्म स्वाभिमान की ।। 2 ।।

पुकारता तुम्हें … मिट गई शान्ति है , बढ़ रही भ्रान्ति है लूट – पाट मच गई , फैल रही अशान्ति है । धज्जियाँ उड़ रही , प्रशासन के नाम की ।। 3 ।

पुकारता तुम्हें … उठो पुत्र शक्ति के , पथ रोक दो विपत्ति के दीप देशभक्ति का , फिर कभी बुझे नहीं । धर्म रथ चल पड़ा , यह कहीं रूके नहीं 11 4॥

पुकारता तुम्हें गगन धरा तुम्हें पुकारती , खड़ा रथ निहारता , कहाँ गया सारथी ॥

सुधीर इस हिंदी ब्लॉग के Founder हैं. वो एक Professional Blogger हैं जो इतिहास Technology, Internet ,समाचार से जुड़ी विषय में रुचि रखते है. सुधीर वेबसाइट होस्टिंग भी प्रदान करते है. वो पेसे से पत्रकार भी है, उन्हें किसी भी विषय पर रिसर्च करना अच्छा लगता है.

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