
बेदाग़ दिल नगीना - हिंदी कविता- वेदप्रकाश लाम्बा

बेदाग दिल नगीना-हिंदी कविता
मेरे ख्वाब-ओ-ख़्याल की रंग-ओ-बू जुदा-सी है
आसमान मेरा अक़्स और चाहत हवा-सी है
ये हसरतों के फूल और वफ़ा की कहानियां
पहरेंगे लिबास सच का ठंडक सुबह-सी है
दरख़्तों का हुस्न हमेशा परिंदों के घोंसले
परवाज़ हौंसलों की रब की रज़ा-सी है
मेरे लिये हैं रौनकें खिलती बहार भी
लफ़्ज़ों के मायनों की सोहबत दुआ-सी है
हंसती हुई कहानी मेरी रात की बांहों में
चाँद तारों की शहादत आखिरी गिज़ा-सी है
बेदाग दिल नगीना अमानत है यार की
बेकरार मैं हूं बंद गली चुभती कज़ा-सी है
वक्त मेरा मेहरबान वक्त वक्त का पाबंद है
वक्त लौटकर नहीं आता बददुआ-सी है
मौजों की रवानी में यादों की जवानी में
मुश्किल बहुत संभलना शिद्दत बला-सी है
दीवानापन कदमों का आँखों की तिश्नगी
लबों के आसपास कोई शैअ हिना-सी है
ज़रा-सी जगह रखना दिल के मकान में
किश्ती लग रही किनारे तनहाई सज़ा-सी है
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धन्यवाद !
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