फूलदेई त्योहार का महत्व -फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे की कहानी

भारतीय हिन्दू संस्कृति अद्भुत और अद्वितीय है। हमारे सभी त्योहार प्रकृति से जुड़े है। हमारे सभी त्योहारों में प्रकृति को पूजा जाता है वह प्रकृति जिसकी वज़ह से हमरा जीवन इस धरती में सम्भव है। उत्तराखंड जो प्रकृति की सुन्दरता का एक जीता जागता उदाहरण है। इन्हीं पहाड़ों में आज भी धूम धाम से प्रकृति की सुन्दरता को फुलदेई त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

फूलदेई त्योहार का महत्व

फुलदेई त्योहार को बाल पर्व के रुप में मनाया जाता है।


कहते है बच्चों और प्रकृति का स्वभाव एक जैसा होता है। निर्मल, स्वच्छ, मासूम व चंचल और सुन्दरता से भरपूर….अतः फुलदेई त्योहार को बाल पर्व के रुप में मनाया जाता है। बच्चों की आस्था और हर्षोल्लास का त्योहार फूलदेई आज देवभूमि में धूमधाम से मनाया जा रहा है। ग्रामीण इलाके आज भी पहाड़ की संस्कृति को संजोए हुए है।
उत्तराखण्ड देवभूमि में इस त्योहार को लेकर बच्चों में खासा उत्साह रहता है। इसके लिए बच्चे पूरे साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। सुबह से ही बच्चे घर-घर जाकर लोगों की देहरी में फूल चढ़ाते है और साथ में यह गीत गाते है- “फुलदेई, छम्मा देईदैणी द्वार, भर भकारये देली स बारंबार नमस्कार”…
इसका अर्थ है कि ‘यह देहरी फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो, सबकी रक्षा करे और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दे’।
उसके बदले में लोग इन नौनिहालों को श्रद्धा से गुड़-चावल प्रसाद के रूप में देते हैं। बच्चों की आस्था से जुड़े इस त्योहार में समाज की उन्नति और संपन्नता के लिए ईष्ट देवता से प्रार्थना की जाती है।

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देवभूमि में फूलदेई पर्व की खास मान्यता

फूलदेई त्योहार की आज से शुरुआत हो गई है। देवभूमि में फूलदेई पर्व की खास मान्यता है। जहां कुमाऊं में इसे फूलदेई के रूप में मनाया जाता है। वहीं, गढ़वाल में फूल संक्राति के रूप में मनाया जाता है।

लेकिन दुःख तब होता है जब अपने ही त्योहारों को भूल जाते है। पश्चिमी सभ्यता में लीन लोगों ने बिन सर पैर के पश्चिमी त्योहार Halloween को तो अपना लिया और अपने बाल त्यौहार फूलदेई को भूला दिया..इसमे बच्चों की नहीं उनके माता-पिता की गलती है जो अपने व्यस्त समय के कारण अपने बच्चों को सुन्दर अलौकिक सनातनी संस्कृति का ज्ञान नहीं दे पाते ..
अब बड़ो ने ही त्यौहारों को भूला दिया तो उनके बच्चे भला इसे क्या मनाएंगे?

मैंने सोशल साइट् में अपने देश से बाहर रह रहे लोगों को और देश में रह रहे लोगों को पश्चिमी सभ्यता से जुड़े त्योहार Halloween को मनाते देखा है। जहां बच्चे अलग अलग तरह से भयानक पोशाकों में लोगों के घर जाकर उन्हे डराकर candies मांगते है।
जब आप सात समुन्दर पार बसे देशों के त्यौहार अपने बच्चों से मनवाते हो तो क्यों ना अपने ही देश के प्रदेश
अपनी ही हिन्दू संस्कृति के त्यौहार को भी मनाया जाए जिसमें प्रकृति की अद्भुत रचना और सुन्दरता को पूजा जाता हो.

आइएफुलदेईमनाए बच्चों को बांस की टोकरी में कुछ सुन्दर फूल डालकर उनसे अपनी देहरी में (दरवाज़े की चौखट) में फूल चढ़वाएं उसके बदले में नौनिहालों को श्रद्धा से गुड़-चावल प्रसाद के रूप में दे आप यहां अपने बच्चों की पसंद का कोई भी मीठा पकवान उनको दे सकते है या फिर बच्चों की पसंद की रंग बिरंगी कैंडी candies भी टोकरी में डाल सकते है।साथ ही बच्चों को इस त्यौहार का महत्व भी अवश्य बताये.

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फूलदेई त्योहार का महत्व


फूलदेई त्योहार का महत्व : बसंत ऋतु के स्वागत के लिए इस पर्व को मनाया जाता है। चैत की संक्रांति यानी फूलदेई के दिन से प्रकृति का नजारा ही बदल जाता है। हर ओर फूल खिलने शुरू हो जाते हैं।
फूलदेई के लिए बच्चे अपनी टोकरी में खेतों और जंगलों से रंग- बिरंगे फूल चुनकर लाते हैं और हर घर की देहरी पर चुनकर लाए इन फूलों चढ़ाते हैं। इस लोक पर्व के दौरान बच्चे लोकगीत भी गाते हैं। ‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार’।।

फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे एक रोचक कहानी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे एक रोचक कहानी भी है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव शीतकाल में अपनी तपस्या में लीन थे। ऋतु परिवर्तन के कई वर्ष बीत गए। लेकिन, शिव की तंद्रा नहीं टूटी। ऐसे में मां पार्वती भी नहीं बल्कि नंदी-शिवगण और संसार के कई वर्ष शिव के तंद्रालीन होने से वे मौसमी हो गए। आखिरकार, शिव की तंद्रा तोड़ने के लिए पार्वती ने युक्ति निकाली और शिव भक्तों को पीतांबरी वस्त्र पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया। फिर सभी देव क्यारियों में ऐसे पुष्प चुनकर लाए, जिनकी खुशबू पूरे कैलाश में महक उठी। सबसे पहले शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किए गए, जिसे फूलदेई कहा गया।
शिव की तंद्रा टूटी लेकिन, सामने बच्चों के वेश में शिवगणों को देखकर उनका क्रोध शांत हो गया। गौरतलब है कि पहाड़ की संस्कृति के अनुसार, इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत भी मानी जाती है। इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं।पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सजा होता है।

उत्तराखंड के लोकप्रिय त्यौहारों में से एक फुलदेई की सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं

वन्देमातरम

Writer – Neha Kurketi

सुधीर इस हिंदी ब्लॉग के Founder हैं. वो एक Professional Blogger हैं जो इतिहास Technology, Internet ,समाचार से जुड़ी विषय में रुचि रखते है. सुधीर वेबसाइट होस्टिंग भी प्रदान करते है. वो पेसे से पत्रकार भी है, उन्हें किसी भी विषय पर रिसर्च करना अच्छा लगता है.

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