माँ हिंदी की लाज -Maa Hindi Ki laaj
हिंदी दिवस मना रहे छेड़कर लंबी तान
मैं मूरख समझा किया माँ का यह अपमान
बीती रात तमसभरी दिन आया घनघोर
निजगौरव को रौंदते अपने घर के चोर
बलि बंधा पाताल में शिवचरणों में बाण
मात-पिता पूजे बिना कहाँ मिलेगा त्राण
विद्युतपात हुआ ऐसा टूटा मन का साज
कृतघ्नता के कंप से बिखरा कल और आज
दासत्व जिनके धुर अंतस धंसा मदमत्तक तीर
जिनके पाँव पँख लगे क्या जाने धरतीपीर
नामाक्षर में माँ नहीं न मासी का रूप
भिक्षाजीवी फिरंगनी छायी बनकर धूप
हिंदी हिंदी कूकते अहिंदी जिनका वेश
आँसू मकर के एक दिन उलूकवंदन शेष
अँधे हाथ बटेर लगी ढीले जिसके पेंच
एक पग आगे धरे दो ले पीछे खेंच
भव्य मंदिर मात संस्कृति होगी छब विशेष
तन मन सब विलायती बस नाम स्वदेशी एक
पूत कपूत हुए ऐसे औंधे जिनके काज
लोकल वोकल ने लूट ली माँ हिंदी की लाज
जन्मदात्री धरित्री नीरमती सब पूजनहारी मात
शब्ददान देवें माँ सरस्वती तभी कहूँ मैं बात
एक दिवस हिंदी के नाम धिक् अवांछित कर्म
आती जाती सांस में रसना जिसका धर्म . . . !