

भारत में एक से बढ़कर एक महान शासकों ने जन्म लिया, किंतु महाराणा प्रताप जैसा कौन है भलां । महाराणा प्रतापएक हिंदू शासक थे, उनकी कार्यकुशलता पराक्रम तो याद किए ही जाते हैं, लेकिन इन सबके अलावा उनके जैसे देश भक्ति की कोई और मिशाल मिल ही नहीं सकती। उनका चेतक उनका परिवार द्वारा घास की रोटियों की कहानी तो हम सभी जानते हैं ।
लेकिन आज हम उनके जीवन से जुड़ी उन अनमोल कथाओं को जानेंगे जिन्हें सुनकर आप का सीना भी चौड़ा हो जाएगा। महाराणा की कीर्ति की आवक इससे ना सिर्फ हमारे लिए बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है । ताकि फिर कोई अकबरजैसा आक्रामक किसी भारतीय के ऊपर टेढ़ी निगाह से देखने का साहस न कर सके। चलिए जानते हैं महाराणा प्रतापसे संबंधित रोचक तथ्यों को : -
उस काल में महाराणा प्रताप अकेला थे
उस काल में महाराणा प्रताप अकेला थे, जो कभी नहीं चुके। महाराणा प्रताप के समय में अकबर मुगल साम्राज्य का तेजी से विस्तार करने में लगा था क्योंकि अकबर बहुत ही विस्तार वाली नीति का बादशाह था। इसलिए कुछ राज्यों ने डर के कारण तो कुछ राज्यों ने राजा बने रहने के लालच में स्वयं को अकबर के सामने नतमस्तक कर दिया।
यहां तक कि जयपुर के राजा मानसिंह अकबर के झंडे के नीचे एक सेनापति बन कर खड़े हो गए। अकबर के सेनापति मानसिंह ने अकबर के समृद्धि को बढ़ाने के लिए कई राज्यों पर चढ़ाई कर दी। अकबर महाराणा प्रताप को झुकाना चाहता था परंतु वे किसी के सामने झुकना अपनी शान के खिलाफ समझते थे, और हल्दीघाटी का युद्ध इसी का नतीजा था।
महाराणा किसी के समक्ष नहीं झूके
महाराणा प्रताप का ताउम्र गुलामी और विधर्मीयों के आगे कभी नही झुके। उनके साथियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। साल 1576 में हल्दीघाटी के मैदान में अकबर के सेनापति मानसिंह और महाराणा प्रताप के बीच भयानक संग्राम लड़ा गया।
उस वक्त मानसिंह के पास 80000 मुगल सैनिकों का एक विशाल लश्कर था। जबकि महाराणा प्रताप मात्र 20,000 राष्ट्रभक्तों के साथ रणभूमि में उतरे दोपहर की तपती रेत में भयानक युद्ध का बिगुल बजा। उस दौरान मानसिंह की सेना की तरफ से महाराणा प्रताप पर वार किया गया। उस वार को वफादार सेनापति हकीम खां सूरी ने अपने ऊपर ले लिया, और उनकी की जान बचाते हुए खुद वीरगति को प्राप्त हो गये।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप के कई साथी सहित झालामान औऱ भामाशाह जी भी युद्ध में महाराणा प्रताप के प्राण बचाते हुए शहीद हुए थे। इतिहास का यह युद्ध ऐसा था जिसमें हिंदुओं की लगभग सभी जातियों के साथ-साथ मुसलमान भी महाराणा प्रताप के लिए मैदान में उतर गए थे।
भील योद्धा महाराणा प्रताप के सबसे विश्वासपात्र थे
भील हुआ करते थे राणा के शेर सिपाही।माना जाता है कि भील योद्धा महाराणा प्रताप के सबसे विश्वासपात्र हुआ करते थे। एक बार अकबर की सेना कुंभलगढ़ के किले पर कब्जा करने के इरादे से आगे बढ़ी। भीलो ने अपने पराक्रम से उस मुस्लिम सेना को वहीं के वहीं ढेर कर दिया था।
भील मेवाड़ के सबसे प्राचीन योद्धा माने जाते हैं
भील मेवाड़ के सबसे प्राचीन योद्धा माने जाते थे ।भील वह देशभक्त सपूत थे, जो मेवाड़ के राणा की रक्षा के लिए खुद को भी कुर्बान कर सकते थे। तभी तो मेवाड़ के पहले राणा से लेकर आज तक मेवाड़ी राणाओं का राजतिलक भील ही करते हैं। प्रताप की सेना में भी भीलो का अहम योगदान था। भील सरदार भीलू राणा ने महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए अपने पुत्रों को कुर्बान कर दिया था।
भूख से भी नहीं टूटे महाराणा
हल्दीघाटी युद्ध के बाद में राणा ने समस्त सेनाओं के साथ जंगलों में ही अपना डेरा बना लिया। हल्दीघाटी जैसे विशाल युद्ध के कारण प्रताप के खजाने पूरी तरह से खाली हो गए तब उन्होंने एक समय का भोजन करने का निर्णय लिया बाकी समय का भोजन अपनी सेनाओं के लिए दे दिया। इतना ही नहीं वह अपने वस्त्रों के साथ-साथ पहनने वाले सोने के आभूषणों को बेचकर सेना के लिए भोजन की व्यवस्था किये।
प्रताप की इस देशभक्ति को सुन अकबर की राज कवि भी थे चकित
माना जाता है कि महाराणा प्रताप की इस देशभक्ति को सुन अकबर की राज कवि अब्दुल रहीम ने भी लिखा हैं कि महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिंदुस्तान के राजाओं में यही एकमात्र ऐसा राजा है जिसने अपनी जाति और धर्म के गौरव को बनाए रखा है।
मरकर भी अमर हो गया चेतक
महाराणा प्रताप के जब जब भी बात आती है तो खुद ब खुद हमारी जुबान पर चेतक का नाम आ जाता है। चेतक एकमात्र घोड़ा नहीं था। महाराणा प्रताप का सबसे विश्वसनीय साथी भी था। हल्दीघाटी युद्ध में राणा प्रताप के कई बहादुर योद्धा वीरगति पा चुके थे। परंतु चेतक ने राणा का साथ नहीं छोड़ा।
हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक भी घायल हुआ परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी। एक वक्त ऐसा भी आया कि महाराणा बुरी तरह से घायल हो गए। अब चेतक महाराणा को हल्दीघाटी के ताण्डव से दूर ले गए। युद्ध भूमि से कुछ दूर निकलने के बाद रास्ते में एक बड़ा नाला आया जिसे पार करना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी चेतक ने छलांग मार दिया, और मुगल सैनिक मुंह ताकती रह गई। चेतक इस लंबी छलांग से पूरी तरह से घायल होकर वीरगति पा गए।
पत्नी ने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया
महाराणा की पत्नी का नाम अजब्दे पवार था। स्वभाव से बहुत ही शांत और सुशील 'अजब्दे पवार' बिजौली ठिकाने की राजकुमारी थी। बिजौली थाना मेवाड़ के अधीन आता था । इस कारण प्रताप की शादी बचपन में ही तय कर दी गई थी। अजब्दे पवार राष्ट्रवादी औरत थी। हर समय महाराणा प्रताप को हिम्मत देती।
इतने बड़े राजा की पत्नी होने के बावजूद 'अजब्दे पवार' खुद सेना के लिए भोजन की व्यवस्था करती थीं। माना जाता है कि वह हर तरह से राजमाता जयवंता बाई की ही एक स्वरूप थी।
युद्ध के दौरान वे अपने प्रजा के बीच में जाकर उनको हिम्मत बनाती कि आपके राणा जी सही सलामत है। इसी के कारण महाराणा का साहस बढ़ता रहता था औऱ वह तमाम युद्ध जीतने में सफल रहे।
12 वर्ष के संघर्ष के बाद भी राणा झुके नहीं
कहा जाता है कि अपने राज्य को विधर्मीयों से बचाने के खातिर राणा प्रताप लगातार 12 वर्षों तक मल्लेछो से संघर्ष करते रहे। बहुत वर्षों तक अकबर ने अपना हथकंडा अपनाया लेकिन वहां महाराणा के साख को खत्म नहीं कर सका। आखिरकार एक लंबी अवधि को जीतकर महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को अकबर की गुलामी से आजाद करवाने में सफल हो गये।
इस आजादी के पीछे उन्होंने अपना सुखचैन सब त्याग दिया था। साल 1585 में मेवाड़ अकबर के कब्जे से आजाद हो गया। इसके बाद प्रताप अपने राज्य की सुख-सुविधाओं में जुड़ गए, पर दुर्भाग्य से इसके कुछ समय बाद ही 19 जनवरी 1597 को उन्होंने हमेशा हमेशा के लिए अपनी आंखें बंद कर दी, और एक सच्चे सूर्यवीर के रूप में सदैव के लिए अमर हो गए।
महाराणा प्रताप यह एक ऐसा नाम है जिसके लेने भर से मुगल सेना के पसीने छूट जाते थे। एक ऐसा राजा जो कभी किसी के आगे नहीं झुका। जिसकी वीरता की कहानियां सदियों के बाद भी लोगों की जुबान पर है। वह तो हमारी एकता में कमी रह गई वरना जितने किलो का अकबर था उतना वजन तो राणा प्रताप की भाले का था।
महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे
वह तिथि धन्य है जब मेवाड़ की शौर्य भूमि पर मेवाड़ मुकुट मणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। वे अकेले ऐसे वीर थे जो मुगल बादशाह अकबर की अधीनता किसी भी प्रकार से स्वीकार नहीं की। चलते-चलते आपको बताते चलें प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप को बचपन में 'कीका' के नाम से पुकारा जाता था । उनके भाला,कवच,ढाल और दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो का होता था।
तो यह राणा प्रताप की अदम्य साहस की कुछ झलकियां थी दोस्तों अगर आपको यह लेख अच्छे लगे हो तो अधिकाधिक इसे शेयर करें,और हमें कमेंट कर अवश्य बताएं कि आपको यह पोस्ट कैसी लगी हमें आपकी कमेंट की प्रतीक्षा रहेगी।
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